गुरु गोबिंद सिंह जी और भाई लाल सिंह
गुरु गोबिंद सिंह जी और भाई लाल सिंह एक बार गुरु गोबिंद सिंह जी के दरबार में लाल सिंह नाम का एक सिक्ख ढाल लेकर हाजिर हुआ। उसने इस ढाल को बनाने में काफी समय लगाया था और इस ढाल को बेध पाना लगभग असंभव था। यह ढाल ना सिर्फ मजबूत थी बल्कि यह बहुत हल्की भी थी। दरबार में सभी ने इस ढाल की प्रशंसा की और गुरु साहिब ने भी ढाल को देखकर अपनी खुशी प्रकट की। भाई लाल सिंह एक बहुत अच्छे सिक्ख थे। पर जब काफी लोगों ने उसकी ढाल व कारीगरी की प्रशंसा की तो उसके हृदय में अहंकार (घमण्ड) पैदा हो गया और उसने संगत में यह घोषणा कर दी कि बंदूक की गोली भी इस ढाल को पार नहीं कर सकती। जैसे ही उसने ऐसा कहा तो गुरु साहिब ने उससे कहा कि वे कल इस ढाल की परख करेंगे। भाई लाल सिंह को अभी भी अपनी गलती का अहसास नहीं हुआ था और उसने यह कहते हुए कि कोई भी गोली इसे नहीं छेद सकती चुनौती स्वीकार कर ली। पर जैसे ही वह गुरु साहिब के दरबार से बाहर निकला, उसे यह अहसास हो गया कि गुरु साहिब को चुनौती देकर उसने एक बहुत बड़ी गलती कर ली है। उसने अपने मन से कहा कि गुरु साहिब एक जाने-माने सूरवीर योद्धा हैं और इन सबसे ऊपर वे सतगुरु भी