भाई मनी सिंह जी की शहीदी


भाई मनी सिंह जी की शहीदी
भाई मनी सिंह जी का जन्म गांव कैथोंवाल के रहने वाले चौधरी काले के घर हुआ। भाई साहिब जी का नाम माता-पिता ने ‘मनीआ' रखा था। जब वह सवा पाँच साल के हुए तो उनके पिता चौधरी काले ने उनको गुरु तेग बहादुर जी को अर्पण कर दिया। वे छोटी उम्र से ही श्री दशमेश पिता जी की सेवा में रहे। जब उन्होंने श्री कलंगीधर से अमृतपान किया तो उनका नाम मनी सिंह रखा गया।
जब सन् 1704 ई. में श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने आनंदपुर छोड़ा तो गुरुजी की आज्ञा के अनुसार भाई मनी सिंह जी माता सुंदरी जी और माता साहिब कौर जी के साथ दिल्ली जाकर रहने लगे तथा सन् 1705 ई. में श्री दशमेश जी की सेवा में दमदमा साहिब पहुंचे। दक्षिण की धरती नांदेड़ जाने के समय भाई मनी सिंह जी भी गुरु जी के साथ चले गये। सचखण्ड गमन करने से पहले दशमेश पिताजी ने माता साहिब कौर जी को भाई मनी सिंह जी के साथ माता सुंदर कौर जी के पास रहने के लिए भेजा।
यहीं से माता सुंदर कौर जी ने श्री दरबार साहिब जी का प्रबंध ठीक करने के लिए भाई मनी सिंह जी को सन् 1721 ई. के शुरू में श्री दरबार साहिब जी का ग्रंथी बना कर भेजा। भाई मनी सिंह जी ने शहर के प्रमुख सिक्खों से सलाह ले श्री दरबार साहिब का प्रबंध सुधारा। श्री अमृतसर साहिब में दिपावली का मेला मुगल सरकार ने काफी सालों से बंद करवा रखा था। सन् 1716 ई. से लेकर 1766 ई. तक खालसे के लिए इम्तिहान का वक्त था। खालसा के सिरों की कीमत रखी गई थी। दुश्मन की ताकत को तबाह करने और अच्छे दिनों की तैयारी में खालसा टूट-बिखर गया था। खालसा जंगलों, पहाड़ों और रेगिस्तान में पनाह लेकर बैठा था। खालसा की ताकत को एकजुट करने के लिए भाई साहिब ने एक योजना बनाई।
सम्वत् 1795 ई. सन् 1738 में भाई साहिब ने सूबा लाहौर से दिपावली मेला लगाने की आज्ञा मांगी। आज्ञा इस शर्त पर दी गई कि मेले के बाद भाई साबिह पाँच हजार रुपए सरकार को देंगे। मेला दस दिन लगना था। इसके लिए भाई साहिब जी ने खालसा को संदेश भेजे, पर उधर सूबे का दीवान लखपत राय की मदद के लिए बहुत भारी फौज भेज दी गई, जिसने राम तीरथ पर आकर डेरा जमा लिया। इनकी योजना थी कि मेले में जब खालसा एकत्र होगा तो हमला करके खालसा तबाह कर दिया जाए। भाई साहिब जी को भी इस योजना का पता लग गया। भाई साहिब ने दुबारा संदेश भेजे की खालसा एकत्र ना हो। भाई साहिब के हुक्म अनुसार खालसा एकत्र नहीं हुआ।
दीपावली के बाद जब लाहौर दरबार ने पैसे मांगे तको भाई साहिब ने स्पष्ट रूप से कह दिया कि खालसा आपकी चालों में नहीं आएगा। एक तरफ आपके फौजी दस्ते खालसा को खत्म करने के लिए गश्त करें और दूसरी तरफ हम आपको पैसे दें। आपका यह वादा था कि खालासे को कुछ नहीं कहा जाएगा। इसलिए किस बात के पैसे ? उन्होंने इसको एक अपराध का दर्जा देते हुए भाई मनी सिंह और दूसरे सिंघों को गिरफ्तार कर लाहौर ले गए।
वहां उनसे कहा गया कि मुसलमान हो जाओ, नहीं तो आपको बंद-बंद (हड्डी के प्रत्येक जोड़ से) काट दिया जाएगा, मगर भाई साहिब ने मुसलमान बनने से साफ इंकार कर दिया। अब वह समय आ गया, जल्लाद ने भाई साहिब को कहा आँखों पर पट्टी बांधना चाहते हो ? भाई साहिब ने कहा, इसकी आवश्यकता नहीं है तुम अपना काम करो। जब जल्लाद कलाई पकड़ कर काटने लगा तो भाई साहिब ने उसे रोक दिया और कहा जल्लाद या तो तुझे समझ नहीं आई या फिर तुम अपना काम भूल गए हो, तुझे बंद-बंद (हड्डी का प्रत्येक जोड़) काटने के लिए कहा गया है। इसलिए पहला जोड़ कलाई से नहीं अंगुलिओं के पोर पर बनता है। इस बंद से पहले कितने बंद बनते हैं, इसलिए अंगुलिओं से शुरू कर।
हरि के सेवक जो हरि भाए तिन की कथा निरारी रे। (अंग 955)
यह कैसी अवस्था है, ‘पहिलां मरणु कबूलि जीवण की छडि आस।।’ भाई साहिब जी का पोटा-पोटा, बंद-बंद काट के शहीद किया जा रहा है पर भाई मनी सिंह जी गुरुकृपा, सिमरन और बाणी के नितनेम का सदका अडोल बैठ कर शहीदी जाम पी गए। ताज्जुब की बात यह है कि भाई मनी सिंह जी गुरु साहिब की शिक्षाओं पर चलते हुए शहीदी प्राप्त कर गए लेकिन उनका परिवार भी पीछे नहीं रहा।
इतिहास पढऩे से पता चलता है कि इस परिवार को गुरुघर से कितना प्यार और लगावा था, भाई साहिब जी के 12 भाईहुए जिनमें 12 के 12 की शहीदी हुई, 9 पुत्र हुए 9 के 9 पुत्र शहीद। इन्हीं पुत्रों में से एक पुत्र थे भाई बचित्र सिंह जिन्होंने नागणी बरछे से हाथी का मुकाबला किया था। दूसरा पुत्र उदय सिंह जो केसरी चंद का सिर काट कर लाया था। 14 पौत्रभी शहीद, भाई मनी सिंह जी के 13 भतीजे शहीद और 9 चाचा शहीद जिन्होंने छठे पातशाह की पुत्री बीबी वीरो जी की शादी के समय जब फौजों ने हमला कर दिया तो लोहगढ़ के स्थान पर जिस सिक्ख ने शाही काजी का मुकाबला करके मौत के घाट उतारा वो कौन था, वे मनी सिंह जी के दादा जी थे। दादा के 5 भाई भी थे जिन्होंने ने भी शहीदी दी। ससुर लक्खी शाह वणजारा जिसने गुरु तेग बहादुर जी के धड़ का अंतिम संस्कार अपने घर को आग लगा कर किया वे भी शहीद हुए। ऐसे गुरु जी के प्यारे जो स्वयं और अपने परिवार को गुरु पर कुर्बान कर देते हैं उनके जीवन से मार्गदर्शन लेकर हमें भी स्वयं को गुरु जी के आगे न्यौछावर करना चाहिए।
शिक्षा: हम कहां और प्यार वाले कहां, गुरु से ऐसा प्यार हमें भी प्राप्त हो।
Waheguru Ji Ka Khalsa Waheguru Ji Ki Fateh
– Bhool Chook Baksh Deni Ji –
Source: DHANSIKHI

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